सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, January 30, 2012

वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है Mohammad in Ved Upanishad & Quran Hadees

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश अरबी माह रबी-उल-अव्वल में हुई थी और रबी उल अव्वल के महीने में ही उनकी वफ़ात हुई। इस माह की 12 तारीख़ को उनकी वफ़ात से जोड़कर ही बारह वफ़ात कहा जाता है।
रबी उल अव्वल का मुबारक महीना चल रहा है। लिहाज़ा उनका ज़िक्र किया जाना ज़रूरी है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. की जीवनी ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह महफ़ूज़ है। लोग उसे पढ़कर उनके बारे में जानते हैं और उनकी सच्चाई पर विश्वास करते हैं, उन्हें अपना आदर्श मानकर अपनी ज़िंदगी भी उनके उसूलों के मुताबिक़ ढालते हैं। दुनिया के जो लीडर उन्हें ईश्वर का दूत नहीं मानते, वे भी उन्हें एक महान सुधारक और अपना आदर्श मानते हैं और उनका नाम आदर से लेते हैं,
लेकिन दुनिया का दौर सिर्फ़ इतना ही नहीं है जिसे इतिहास ने महफ़ूज़ कर लिया है, कुछ ऐसी हक़ीक़तें भी हैं जिन्हें इतिहास ने महफ़ूज़ नहीं किया है और कुछ हक़ीक़तें ऐसी भी हैं जो इतिहास के दायरे से ही बाहर हैं। ये हक़ीक़तें इतनी गहरी हैं कि इन्हें गहरी समझ वाले ही याद रख पाए और इन्हें समझने के लिए समझ भी गहरी ही चाहिए।
हक़ीक़त गहरी हो और उसे भारत न जानता हो ?
यह एक असंभव बात है।
भारत का साहित्य गहरी हक़ीक़तों से लबालब भरा हुआ है। गहरी हक़ीक़तों के जानने वाले को ही पंडित कहा जाता है।
पंडित वह सत्य भी जानते हैं जिसे इतिहास ने महफ़ूज़ कर लिया और जिसे सब जानते हैं और पंडित वह परम सत्य भी जानते हैं जिसे सुरक्षित रखने का सौभाग्य केवल उन्हीं को मिला और जिसे कम लोग ही जानते हैं।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भारत के वैदिक पंडित किस रूप में जानते हैं ?
यह जानने के लिए आज हम वेद भाष्यकार पंडित दुर्गाशंकर सत्यार्थी जी का एक लेख यहां पेश कर रहे हैं।
आज तक लोगों ने यही जाना है कि ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होय‘ लेकिन अगर ‘ज्ञान‘ के दो आखर का बोध ढंग से हो जाए तो दिलों से प्रेम के शीतल झरने ख़ुद ब ख़ुद बहने लगते हैं। यह एक साइक्लिक प्रॉसेस है।
पंडित जी का लेख पढ़कर यही अहसास होता है।
मालिक उन्हें इसका अच्छा पुरस्कार दे, आमीन !


वेद भाष्य ऋग्वेद 1,1,2 के अन्तर्गत पं. दुर्गाशंकर महिमवत् सत्यार्थी
वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है
वेद भाष्य ऋग्वेद 1,1,2

अग्नि पूर्वोभिर्ऋषिभिरीडयो नूतनैरूत। स देवां एह वक्षति।। 2।।
अग्नि पूर्वकालीन ऋषियों द्वारा ईलन किए जाने योग्य है, और नूतनों द्वारा वह देवों को यहां एकत्रित करता है।

नूतनैरूत का अभिप्राय यह नहीं है कि वेद की दृष्टि में कुछ ऋषि ऐसे हैं जो प्राक्-वेदकालीन थे। ब्राह्मण ग्रंथ वेद का प्रामाणिक भाष्य है, जो वैदिक संस्कृत में है। उनके कुछ विशिष्ट भागों को पृथक करके आरण्यक ग्रंथों का निर्माण हुआ। जिस प्रकार श्रीमद्-भगवदगीता में उसके महत्व के कारण महाभारत से पृथक करके प्रकाशित किया गया। फिर आरण्यक ग्रंथों में से भी ब्रह्म विद्या विषयक प्रकरणों को पृथक्तः उपनिषद संज्ञा देकर प्रकाशित एवं प्रचारित किया।
आधुनिक युग के सर्वोत्तम वेदवेत्ता भगवान् ऋषि दयानंद ने संहिता ग्रंथों को वेद का आदि भाष्य माना। वेद के द्वितीय खंड यजुर्वेद का आदि भाष्य दो प्रकार के संहिता ग्रंथ समूहों पर आधारित है-
1. कृष्ण यजुर्वेद
2. शुक्ल यजुर्वेद
आधुनिक हिंदू समाज में एक हिस्सा ऐसा भी पाया जाता है जो संहिता ग्रंथों को वेद का आदि भाष्य नहीं प्रत्युत वेद माना करता है। फिर आरण्यक ब्राह्मण ग्रंथों का भाग है। ये आरण्यक ग्रंथ भी वेद हैं और उपनिषद आरण्यक ग्रंथों का भाग हैं। इसीलिए उपनिषद भी वेद हैं। उपनिषदों के आगे वेद नहीं है।
यह एक ऐसा विवादग्रस्त विषय है जो वर्तमान हिंदू समाज में भी विवादित बना हुआ है। विद्वानों का एक वर्ग अभी भी यही मानता है कि उपनिषद स्वयं वेद है और दूसरा वर्ग अपने इस निश्चित मत पर दृढ़ है कि उपनिषद वेद नहीं, प्रत्युत वेद भाष्य है।
यहां यह प्रश्न अनावश्यक है कि इन दोनों विद्वानों में से कौन सत्य है ?
सप्रतिस्थिति श्वेताश्वतर उपनिषद का परिगणन कृष्ण यजुर्वेद अंतर्गत किया जाता है। अब, यदि यह वेद है, तो यह स्वयं वेद प्रमाण है कि वेद के पहले का कोई काल वेद की दृष्टि में नहीं है, और यदि यह वेद भाष्य है तो, यह वेद के आदि भाष्य का कथन है कि सृष्टि में आज तक कोई प्राक्-वेदकाल नहीं पाया जाता।
यो ब्रह्मण विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्रच प्रहिणोति तस्मै। ण्ं देवमात्मबुद्धि प्रकाशं मुमुक्षुर्वे शरणमंह प्रपद्ये।
श्वेताश्वतरोपनिषद 6,18
‘जो सर्वप्रथम परमपुरूष का निर्माण करता है और जो उसके लिए वेद का प्रकाश करता है मोक्ष की इच्छा रखने वाला मैं उसी दिव्य गुणों वाले की शरण में जाता हूं जिसने अपनी बुद्धि का प्रकाश (वेद में) किया है।
यहां सृष्टि के सर्वप्रथम पुरूष का निर्माण करके उसके लिए ईशान द्वारा वेद का प्रकाश किए जाने की बात कही गई है।
क़ुरआन मजीद के अनुसार भी कोई ऐसा काल नहीं था जब ईशान ने अपने ज्ञान से किसी व्यक्ति को वंचित रखा हो। यही कथन इस संदर्भ में बाइबिल का है।
स्वर्गीय आचार्य शम्स नवेद उस्मानी की प्रख्यात रचना ‘अगर अब भी न जागे तो ...‘ (प्रस्तुति: एस. अब्दुल्लाह तारिक़) ने इस संदर्भ में एक पृथकतः स्वतंत्र अध्याय पाया जाता है।
सरवरे कायनात (स.) ही इस सृष्टि का प्रारंभ हैं।

सबसे पहले मशिय्यत के अनवार से,
नक्शे रूए मुहम्मद (.) बनाया गया
फिर उसी नक्श से मांग कर रौशनी
बज़्मे कौनो मकां को सजाया गया
-मौलाना क़ासिम नानौतवी
संस्थापक दारूल उलूम देवबंद

हदीसों (= स्मृति ग्रंथों ?) से केवल इतना ही ज्ञात नहीं होता कि रसूलुल्लाह (स.) की नुबूव्वत भगवान मनु के शरीर में आत्मा डाले जाने से पहले थी, प्रत्युत हदीसों से यह भी प्रमाणित होता है कि हज़रत मुहम्मद मुज्तबा (स.) का निर्माण संपूर्ण सृष्टि, देवों, द्यावापृथिवी और अन्य सृष्टियों और परम व्योम (= मूल में ‘अर्शे इलाही‘) से भी पहले हुई थी और फिर नूरे-अहमद (स.) ही को ईशान परब्रह्म परमेश्वर ने अन्य संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का माध्यम बनाया।
(‘अगर अब भी न जागे तो ...‘ पृ. सं. 105 उर्दू से अनुवाद, दुर्गाशंकर महिमवत् सत्यार्थी।)
उक्त पुस्तक और कतिपय अन्य पुस्तकों में भी यह प्रमाणित करने के प्रयत्न किए गए हैं कि वेद में हुज़ूर . का उल्लेख नराशंस के नाम से पाया जाता है। मेरे अपने अध्ययन के अनुसार मैं उन समस्त व्यक्तियों से क्षमा प्रार्थी हूं। जो अपने अध्ययनों द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। मैं यह मानता हूं, और अपने अध्ययन द्वारा इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि वेद में नराशंस शब्द से कोई व्यक्ति विशेष अभिप्रेत नहीं है। उसका अभिप्राय केवल नरों द्वारा प्रशंसित मात्र है, जिससे कहीं परम पुरूष भी अभिप्रेत है, कहीं ईशान स्वयमेव भी अभिप्रेत है और कहीं अन्य व्यक्ति भी अभिप्रेत हैं। मेरे अपने अध्ययन के अनुसार वेद में हुज़ूर स. का उल्लेख उससे कहीं अधिक उत्कृष्ट ढंग से है, जितने उत्कृष्ट ढंग से संदभिति मनीषियों द्वारा उनका उल्लेख पाया गया है -
इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न। यो अस्याध्यक्षः परमेव्योमन्तसो अंग वेद यदि वा वेद।
वेद 1,10,129,7
यह विविध प्रकार की सृष्टि जहां से हुई, इसे वह धारण करता है अथवा नहीं धारण करता जो इसका अध्यक्ष है परमव्योम में, वह हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता।
सामान्यतः वेद भाष्यकारों ने इस मंत्र में ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान परब्रह्म परमेश्वर अर्थ ग्रहण किया है, किन्तु इस मंत्र में एक बात ऐसी है जिससे यहां ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान अर्थ ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह बात यह है कि इस मंत्र में सृष्टि के अध्यक्ष के विषय में कहा गया है - ‘सो अंग ! वेद यदि वा न वेद‘ ‘वह, हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता‘। ईशान के विषय में यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह कोई बात नहीं जानता। फलतः यह सर्वथा स्पष्ट है कि ईशान ने यहां सृष्टि के जिस अध्यक्ष की बात की है, वह सर्वज्ञ नहीं है। मेरे अध्ययन के अनुसार यही वेद में हुज़ूर स. का उल्लेख है। शब्द ‘नराशंस‘ का प्रयोग भी कई स्थानों पर उनके लिए हुआ है किन्तु सर्वत्र नहीं। इसी सृष्टि के अध्यक्ष का अनुवाद उर्दू में सरवरे कायनात स. किया जाता है।
फलतः श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार वेद का सर्वप्रथम प्रकाश जिस पर हुआ। वह यही सृष्टि का अध्यक्ष है। जिसे इस्लाम में हुज़ूर स. का सृष्टि-पूर्व स्वरूप माना जाता है।
मैं जिन प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, आइये अब उसका सर्वेक्षण किया जाए।
स्वर्गीय आचार्य शम्स नवेद उस्मानी की तर्जुमानी करते हुए एस. अब्दुल्लाह तारिक़ अपनी प्रख्यात रचना ‘अगर अब भी न जागे तो ...‘ में लिखते हैं -
‘नीचे हम हज़रत मुजददिद अलफ़े-सानी शैख़ अहमद सरहिन्दी रह. के मक्तूबाते-रब्बानी से कतिपय हदीसें उद्धृत हैं।
प्रख्यात हदीसे-क़ुदसी में आया है, मैं एक छिपा हुआ ख़ज़ाना था, मैंने महबूब रखा कि मैं पहचाना जाऊं, फिर मैंने मख़लूक़ को पैदा किया ताकि मैं पहचाना जाऊं।
सर्वप्रथम जो चीज़ इस ख़ज़ाने से प्रागट्य के रूप में समक्ष आई, वह मुहब्बत थी, जो कि मख़लूक़ात की पैदाइश का कारण हुई।
(मक्तूबाते रब्बानी, उर्दू अनुवाद, दफ़तर 3, भाग 2, पृष्ठ 160, मक्तूब 122, प्रकाशक: मदीना पब्लिशिंग कंपनी बंदर रोड कराची)
(-‘अगर अब भी न जागे तो ...‘, पृष्ठ 105, उर्दू से अनुवाद: दुर्गाशंकर महिमवत् सत्यार्थी-)
यह दोनों तथ्य, जिनका उल्लेख हदीसों में इस प्रकार हुआ है, हदीसों से भी पहले हिंदू धर्मग्रंथों में इस प्रकार अभिव्यक्त की गई हैं-
एको हं बहु स्याम्।
‘मैं एक हूं अनेक हो जाऊं।‘
वै नैव रेमे तस्मादे काकी रमते द्वितीयमैच्छत्।
शतपथ ब्राह्मण 14,3,4,3
उसने रमण नहीं किया इसीलिए एकाकी रमण नहीं होता। उसने द्वितीय की इच्छा की...।
यदिदं किंच मिथुनं आपिपीलिकाभ्यः तन्सर्वमसृक्षीत्। सो वेद अहं वाव सृष्टिरस्मि। अहं टि इदं सर्व असृक्षीति। ततः सृष्टिरभवत्।
-शतपथ ब्राह्मण 14,3,4,3
‘जो कुछ यह चींटी पर्यन्त जोड़ा है उस संपूर्ण की सृष्टि की। उसने जाना मैं ही सृष्टि हूं। मैंने ही यह सब सृष्टि की है। उससे सृष्टि हुई।‘
कामस्तदये समवर्तत।
-वेद 1,10,129,4
‘सर्वप्रथम काम भलीभांति विद्यमान था।‘

श्वेताश्वरोपनिषद और हदीसों, दोनों के अनुसार फलतः कोई प्राक्-वैदिक काल नहीं था। वेद का प्रकाश सृष्टि के आदि पुरूष पर हुआ। जिसे हिंदू इतिहास में परम पुरूष और इस्लामी साहित्य में नूरे अहमदी स. कहा गया है। ऐसी स्थिति में यह कदापि नहीं माना जा सकता है कि वेद से पहले भी किन्हीं ऋषियों का अस्तित्व था, फिर यहां किन्हें पूर्वकालीन ऋषि कहा गया है ?
वस्तुतः यह सारा भ्रम यह मानने से है कि वेद केवल सृष्टि के आदिकालीन जनों के लिए है- वेद वस्तुतः सार्वकाल्कि ग्रंथ है - वह हर काल के लोगों के लिए है -
देवस्य पश्य काव्यं ममार जीर्यति
-वेद 4,10,18,32
देखो दिव्य गुणों वाले के काव्य को, न मरा न पुराना होता।
वस्तुतः वेद और क़ुरआन, दोनों का एक साथ अस्तित्व नास्तिकों के लिए घोर परेशानी का कारण बना हुआ है और अंग्रेज़ इस संभावना से आतंकित थे कि यदि यह रहस्य हिंदुओं और मुसलमानों पर खुल गया कि वेद और क़ुरआन, दोनों की सैद्धांतिक शिक्षाएं सर्वथा एक समान हैं और दोनों एक ही धर्म के आदि और अंतिम ग्रंथ हैं, तो हिंदुओं और मुसलमानों में वह मतैक्य संस्थापित होगा कि उन्हें हिंदुस्तान से पलायताम की स्थिति में आने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं रहेगा। यही कारण है कि अंग्रेज़ों ने वेद के बहुदेवोपास्यवादी अनुवाद कराना अपना सर्वप्रथम कार्य निश्चित किया।
किंतु वेद दिव्य गुणों वाले का वह काव्य है, जो न मरा न पुराना होता। जब वेद इस दावे के साथ अपने आप को सृष्टि के आदि में प्रस्तुत कर रहा था तो यह प्रगट है कि उसमें केवल सृष्टि के आदिकाल के दृष्टिकोण से बातें नहीं की जा सकती थीं। उसमें सृष्टि के आदिकाल से आगे के काल की दृष्टिकोण से भी बातें की जानी परमावश्यक थीं, और ‘पूर्वऋषि‘ ‘पहले के ऋषि‘ सृष्टि के आदिकाल में नहीं तो उसके उपरांत तो पाए जाने ही थे। फलतः विल्सन और ग्रिफ़िथ ने जो संदेह इस मंत्र में उत्पन्न करने का प्रयास किया है, वह वेद के इस मंत्र का ऐसा भाष्य करने से उत्पन्न होता है जो वेदमंत्र (वेद 4,10,8,32) से टकराता है। पाश्चात्य महानुभावों ने अपने अनुवादों और भाष्यों में इस बात का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रखा है कि वे अन्य मंत्रों के अनुवादों और भाष्यों से न टकराएं। ऐसे भाष्य और ऐसे अनुवाद केवल ऐसे ही लोगों के लिए मान्य हो सकते हैं जिन्होंने अपने सामान्य ज्ञान तक का प्रयोग वेद को समझाने के लिए न करने की क़सम खा रखी है। वेद ब्रह्मवाक्य है, कलाम ए इलाही है अथवा कम से कम उसका दावा तो अपने विषय में यही है। जिसका कोई तर्कसंगत तथ्यपरक खंडन आज तक किसी के द्वारा नहीं किया जा सका। ऐसी स्थिति में उसके साथ ऐसा खिलवाड़ केवल वही व्यक्ति कर सकता है अथवा वही व्यक्ति समूह जिसे ईशान का लेशमात्र भी भय न हो-
‘जब उनसे कहा जाता है कि ज़मीन में उत्पात न फैलाओ तो कहते हैं हम तो सुधार करने वाले लोग हैं। जान लो वास्तव में यही लोग उत्पात फैलाने वाले हैं।, परंतु इन्हें इसका ज्ञान नहीं है। जब इनसे कहा जाता है कि इस तरह ईमान लाओ, जिस तरह लोग ईमान लाए हैं, तो कहते हैं क्या हम उस तरह ईमान लाएं जिस तरह मूर्ख लोग ईमान लाए हैं ?
जान लो ! मूर्ख यही लोग हैं, परंतु इन्हें ज्ञात नहीं है।‘
-क़ुरआन मजीद 2,11-13
(विश्व एकता संदेश पाक्षिक, पृष्ठ संख्या 7 व 8 पर वेद भाष्य ऋग्वेद 1,1,2 के अन्तर्गत पं. दुर्गाशंकर महिमवत् सत्यार्थी द्वारा लिखित ‘वेद आदि ग्रन्थ और क़ुरआन अन्तिम ग्रन्थ है‘, अंक 19-20, अक्तूबर 1994, रामपुर, उ. प्र.)

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पोस्ट के विषय को समझने के लिए ये दो किताबें भी उपयोगी हैं,
1. अगर अब भी न जागे तो ...
लेखक - आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रह.

2. नराशंस और अंतिम ऋषि
लेखक - डा. वेद प्रकाश उपाध्याय


11 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

wah! kya baat hai

shyam gupta said...

---सारी बात ठीक प्रकार से वेदों को पढने व गुनने से ही ग्यात होती है...देखिये....
१-" सारा भ्रम यह मानने से है कि वेद केवल सृष्टि के आदिकालीन जनों के लिए है- वेद वस्तुतः सार्वकाल्कि ग्रंथ है - वह हर काल के लोगों के लिए है "-
---- कौन कहता है यह बात ? कोई भी हिन्दू नहीं..सभी जानते हैं कि वेद वस्तुतः सार्वकाल्कि ग्रंथ है - आखिर भ्रम है कहां....कहीं नहीं....हिन्दू समाज में भी कोई विवाद नहीं है वेद के लिये...यह लेखक का ही भ्रम है या नादानी....

२-"इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न। यो अस्याध्यक्षः परमेव्योमन्तसो अंग वेद यदि वा न वेद।‘
---इसका अर्थ हे अन्ग !,,आदि नहींजो धारण करता है उस अध्यक्ष को यह परमव्योम भी नहीं जानता एवम वेद अर्थात स्वयं ग्यान भी उसे नहीं जानता ..क्योंकि ग्यान स्वयं उसी के द्वार उत्पन्न किया हुआ है...

३-अग्नि पूर्वोभिर्ऋषिभिरीडयो नूतनैरूत। स देवां एह वक्षति।। 2।।

अग्नि पूर्वकालीन ऋषियों द्वारा ईलन किए जाने योग्य है, और नूतनों द्वारा वह देवों को यहां एकत्रित करता है।
----गलत अर्थ है....अर्थ यह् है कि अग्नि( या अग्नि देव) सर्वप्रथम उत्पादित तत्व( ग्यान या रिषि) है वह सभी पूर्वकालीन रिषियों द्वारा प्रार्थनीय है एवं नूतन रिषियों के लिये रित..अर्थात ..एक निश्चित अनुकरणीय विधान है....वह सभी देवों में स्थित है...सभी देव ( शक्तियां--ऊर्जायें-ग्यान-विग्यान )उसमें निहित है।

---पूर्वकालीन रिषियों का अर्थ...वैदिक या हिंदू धर्म-अद्यात्म में...श्रिष्टि--लय--श्रिष्टि की क्रमिक बारम्बारिता का सिद्धान्त है...प्रत्येक बार( कल्प में) जब प्रलय के पश्चात नवीन श्रिष्टि ..नये ब्रह्मा द्वारा की जाती है तो वह....’पूर्वमकल्पयत’ ...अर्थात पुरा-श्रिष्टि की भान्ति, पूर्वकालीन रिषियों की भान्ति करता है...

---अत: यह सत्य है कि--
- अव्यक्त ब्रह्म = कुरान का..रसूलुल्लाह (स.)
-व्यक्त ईश्वर =हज़रत मुहम्मद मुज्तबा (स.) --ब्रह्मा =नूरे-अहमद (स.)
-- एकोहं बहुस्याम..तस्मैद एकाकी आदि= मैं एक छिपा हुआ ख़ज़ाना था, मैंने महबूब रखा कि मैं पहचाना जाऊं, फिर मैंने मख़लूक़ को पैदा किया ताकि मैं पहचाना जाऊं।‘
--- सर्वप्रथम भाव जो उत्पन्न हुआ वह स्नेह( द्वितीयमैच्छत-प्रेम से लेकर काम तक.. ) = कुरान का मुहब्बत
---------अत निश्चय ही कुरान में वही सब सतही तौर पर लिखा गया है जो वेदों में तार्किक तौर पर है ....क्योंकि वेद आदि ग्रन्थ हैं व कुरान नवीन ....

मनोज कुमार said...

मैं तो आपके आलेखों से नित नवीन ज्ञान हासिल करता हूं।

इस विषय पर उतना गहरा अध्यन नहीं है इसलिए इससे अधिक कुछ कहने की मैं हैसियत नहीं रखता।

DR. ANWER JAMAL said...


हमारा मक़सद दूरियां ख़त्म करना है

@ भाई डा. श्याम गुप्ता जी ! आपकी यह आम आदत है कि अपने विषय के प्रकांड पंडित को आप बेधड़क अज्ञानी कह देते हैं जबकि हक़ीक़त यह होती है कि आपने लेख को ढंग से पढ़ा तक नहीं होता और न ही उसे समझने की गंभीर कोशिश की होती है।
इस लेख के लिखने वाले को आप अज्ञानी और नादान कह रहे हैं जबकि हक़ीक़त इसके खि़लाफ़ है।
आपने पहले बिंदु में यह ऐतराज़ जताया है कि

---- कौन कहता है यह बात ? कोई भी हिन्दू नहीं..सभी जानते हैं कि वेद वस्तुतः सार्वकाल्कि ग्रंथ है - आखिर भ्रम है कहां....कहीं नहीं....हिन्दू समाज में भी कोई विवाद नहीं है वेद के लिये...यह लेखक का ही भ्रम है या नादानी....

लेखक ने जो बात नास्तिकों और अंग्रेज़ों के बारे में कह रहे हैं, उसे आप हिंदुओं के बारे में समझ बैठे, देखिए-

वस्तुतः वेद और क़ुरआन, दोनों का एक साथ अस्तित्व नास्तिकों के लिए घोर परेशानी का कारण बना हुआ है और अंग्रेज़ इस संभावना से आतंकित थे कि यदि यह रहस्य हिंदुओं और मुसलमानों पर खुल गया कि वेद और क़ुरआन, दोनों की सैद्धांतिक शिक्षाएं सर्वथा एक समान हैं और दोनों एक ही धर्म के आदि और अंतिम ग्रंथ हैं, तो हिंदुओं और मुसलमानों में वह मतैक्य संस्थापित होगा कि उन्हें हिंदुस्तान से पलायताम की स्थिति में आने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं रहेगा। यही कारण है कि अंग्रेज़ों ने वेद के बहुदेवोपास्यवादी अनुवाद कराना अपना सर्वप्रथम कार्य निश्चित किया।

लेखक पं. दुर्गाशंकर महिमवत् सत्यार्थी जी का ज्ञान इतना गहरा है कि उनके बताने से ही आपको पता चला कि नासदीय सूक्त में जिसे ‘सृष्टि का अध्यक्ष‘ कहा गया है, वह पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के बारे में आया है। उनके बताने से पहले तो आप यह रहस्य न जानते थे। ऐसी प्रखर प्रज्ञा वाले विद्वान के बारे में तो आपको संभलकर बोलना चाहिए था।
यही बात आपने पवित्र क़ुरआन के बारे में कह दी है कि उसमें तो सतही तौर पर लिखा गया है। जिस क़ुरआन को सिखाने के लिए ‘सृष्टि का अध्यक्ष‘ स्वयं इस जगत में आया, वह क़ुरआन सतही कैसे हो सकता है ?
जबकि आप ख़ुद मान रहे हैं कि दोनों में ‘एक ही ज्ञान‘ है।

इसी तरह आपने बराबर (=) के चिन्ह लगाकर भी कुछ समझाने की कोशिश की है,
पहले आप बार बार इस लेख को अच्छी तरह पढ़ लीजिए, इसके बाद ही लेखक के बारे में कोई राय क़ायम कीजिए।

हमारा मक़सद दूरियां ख़त्म करना है इसलिए एकता के जितने भी सूत्र सामने आएं, उसमें हम सबका ही भला है।

धन्यवाद !

Anita said...

सभी धर्म एक ही परमात्मा से उपजे हैं,धर्मों के नाम पर अलगाव व भेद भाव मनुष्य की मूर्खता के अलावा कुछ नहीं, एकता हो ऐसी हर बात का स्वागत करना चाहिए.

डा श्याम गुप्त said...

वेदों के नासदीय सूक्त में वर्णित श्रिष्टि का अध्यक्ष ...पैगम्बर हज़रत मुहम्मद कैसे होगये जो धरती पर पैदा हुए एवं वेदों के युगों बाद......
---हां रसूलुल्लाह ( जिसका अर्थ शायद/यदि खुदा/अल्लाह है तो...मुझे उर्दू में इस शब्द का वास्तविक अर्थ नहीं पता ) को श्रिष्टि का अध्यक्ष माना जा सकता है ....
---एकता की बात भी( अथवा कोई भी बात ) किसी असत्य भाषण या उद्धरण द्वारा भी मान्य नहीं होती.....साधन व साध्य भी सत्य होने पर ही ...प्रतिफ़ल ..सत्य होता है ......वाद-विवाद , विचार-विमर्श , बहस इसीलिये होते हैं....

Ravi Chauhan said...
This comment has been removed by the author.
Ravi Chauhan said...
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विभावरी रंजन said...

@dr.shyam gupt....aap kuch bhi kahte rahen par aapki baat maani nahi jayegi,lekhak ke apne vichaaron ko aap kahan rok payenge,asal me lekhak mahoday ko apne hisab se vedon ki wyakhya karne,ya kuch yahan wahan ki jaankari yoon hi juta lene ki aadat hai...
Lekhak mahashay se savinay nivedan hai ki Ek baar agniveer.com par jakar islaam aur sanatan dharm ke baare me kuch jaankaari hasil kar lijiye aur fir baat kijiye...ek baar agniveer.com pe jayenge to aapko allopanishad ki bhi wyakhya mil jayegi...
Aur chauhaan ji ki post me kya aisa tha ki delete karna pad gaya...

DR. ANWER JAMAL said...

@ डा. श्याम गुप्ता जी ! धरती पर भौतिक तत्वों से बने शरीर के पैदा होने से पहले भी ‘आत्मा‘ का अस्तित्व होता है, यह बात आप भी जानते हैं। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. की रूह ‘सृष्टि की अध्यक्ष‘ है। पंडित जी ने यही बताया है।
देखिए -
1- हज़रत मुहम्मद मुज्तबा (स.) का निर्माण संपूर्ण सृष्टि, देवों, द्यावापृथिवी और अन्य सृष्टियों और परम व्योम (= मूल में ‘अर्शे इलाही‘) से भी पहले हुई थी और फिर नूरे-अहमद (स.) ही को ईशान परब्रह्म परमेश्वर ने अन्य संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का माध्यम बनाया।

2- फलतः श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार वेद का सर्वप्रथम प्रकाश जिस पर हुआ। वह यही सृष्टि का अध्यक्ष है। जिसे इस्लाम में हुज़ूर स. का सृष्टि-पूर्व स्वरूप माना जाता है।

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई विभावरी रंजन जी ! वेबसाइट्स तो बहुत सी हैं, एक आदमी क्या क्या देखे ?
आपने आज तक यह वेबसाइट भी न देखी होगी और अग्निवीर ने देखी होगी तो वह बोले नहीं कि मैं क्या देखकर आ रहा हूं ?
लिंक यह है, इस पर न जाएं-

http://www.dailymotion.com/video/xd8iqx_maharishi-dayanand-saraswati-life-h_webcam